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फ़रवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भिक्षुकोपनिषद (Bhikshukopanishada)

भिक्षूनां पटलं यत्र विश्रान्तिमगमत्सदा । तत्त्रैपदं ब्रह्मतत्त्वं ब्रह्ममात्रं करोतु माम् ।। जहाँ भिक्षुकों का समूह होता है, वहाँ सदैव ही विश्रान्ति पहुँच जाती है । वही त्रिपदा ब्रह्मतत्त्व मुझे ब्रह्म-प्राप्त (ब्रह्मज्ञान से युक्त) कर दे । Wherever there is a cluster of ascetics, spiritual peace reaches there itself. The Tripada Brahma (which has three bases) make me filled with the wisdom related to Brahma. ॐ पूर्णमदः इति शान्तिः ।। ॐ अथ भिक्षूणां मोक्षार्थिनां कुटीचकबहूदकहंसपरमहंसाश्चेति चत्वारः । ॐपूर्णमद इत्यादि शान्ति पाठ ।। ॐ मोक्षार्थी भिक्षुक चार प्रकार के होते हैं- कुटीचक, बहूदक, हंस और परमहंस । Oum. The salvation seeker ascetics are of four types – Kutichaka, Bahoodaka, Hansa and Paramhansa. कुटीचका नाम गौतम-भरद्वाज-याज्ञल्क्य-वसिष्ठ-प्रभृतयोऽष्टौ ग्रासांश्चरन्तो योगमार्गे मोक्षमेव प्रार्थयन्ते । कुटीचक नाम के भिक्षुक गौतम, भरद्वाज, याज्ञवल्क्य, भरद्वाज, वसिष्ठ के जैसे होते हैं जो आठ ग्रास भोजन करते हुये योगमार्ग में आरूढ़ होकर मोक्ष...

Sant Vaani ।। Swami Shri Veinkateshacharya Ji ।। Vaani Channel

लगन तुमसे लगा बैठे, जो होगा दैखा जायेगा

लगन तुमसे लगा बैठे, जो होगा देखा जाएगा । तुझे अपना बना बैठे, जो होगा देखा जाएगा ।।       कभी दुनिया के डर से हम, छिप-छिप याद करते थे ।       अब परदा उठा बैठे, जो होगा... कभी बेताब की दुनिया, हमें परेशान करती थी ।                   हमें बर्बाद करती थी । शर्म अब सब खो बैठे, जो होगा...       दीवाने बन के बैठे हैं, तो फिर दुनिया से क्या मतलब ।       तो तब से दिल लगा बैठे, जो होगा... मैं सर्वस दे भी सकती हूँ, तुम्हारे इक इशारे पर । कहीं दिल टूट न जाए, जो होगा...

आरती श्रीगुरुशरण की कीजै, Aarati Shree Gurusharana kee keejai

आरती श्रीगुरुशरण (श्रीगुरुचरण) की कीजै । भव तरणन की सिद्धि लीजै । जग में या सम ठौर नहीं, या से परे कुछ और नहीं । सबसे बढ़कर ज्ञान यहीं, सब इनको अपना बस लीजै ।। आरती श्रीगुरु... वेद शास्त्र के ज्ञान यहाँ पर, भक्ति वैराग उपदेश यहाँ पर । राम-कृष्ण की लीला यहाँ पर, नाम-लीला-रूप रसपान कीजै ।। आरती श्रीगुरु.. तुलसी-कबीर-गुरुनानक यहीं पर, शंकर-वल्लभ-रामानुज यहीं पर ।। गौर-ज्ञानेश्वर-रामानंद यहीं पर, मेंही-तुकाराम-सूर यहीं पर ।। आरती श्रीगुरु...

मार्तण्ड (सूर्य) औऱ उनके संतान की उत्पत्ति

हिरण्यमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहीतं मुखं ।  तत्त्वं पूषण अपावृणु सत्य धर्माय दृष्टये । पुराणों में सूर्य को लेकर अत्यन्त ही सुन्दर कथा आती है । आइये सूर्य और उनकी संतति के जन्म की संक्षिप्त कथा को जानने की कोशिश करें । मरीचि मुनि ब्रह्माजी के पुत्र हैं । उन मरीचि मुनि के पुत्र का नाम कश्यप मुनि था । ये प्रजापतियों में सबसे अधिक श्रीसम्पन्न थे क्योंकि ये देवताओं के पिता थे । बारहों आदित्य उन्हीं के पुत्र थे । द्वादश आदित्य में मार्तण्ड महान प्रतापशाली थे । सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य का आविर्भाव हुआ था । वे अण्ड के साथ उत्पन्न हुये और अण्ड में रहते हुये ही उन्होंने वृद्धि प्राप्त की । बहुत दिनों तक अण्ड में रहने के कारण ये मार्तण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुये । जब ये अण्ड में स्थित ते तभी दक्ष प्रजापति ने अपनी रूपवती कन्या रूपा को भार्या के रूप में इन्हें अर्पित किया । अन्य जगह पर इन्हीं रूपा का नाम संज्ञा बताया गया है और इनको विश्वकर्मा की पुत्री बताया गया । कल्पान्तर में ऐसा सम्भव हो सकता है । दक्ष की आज्ञा से ही विश्वकर्मा ने इन मार्तण्ड केशरीर का संस्कार किया, जिससे ये अतिशय त...

होली की कथा

आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं । परमात्मा आपके परिवार में सबको सुख-शांति-समृद्धि प्रदान करें । भविष्यपुराण में कई व्रत त्यौहारों पर विशेष रूप से चर्चा की गई है । महाराज युधिष्ठिर के प्रश्नों का उत्तर देते हुये भगवान श्रीकृष्ण ने कई पर्व और त्यौहारों के संदर्भ में इतिहास को बताया है । होली की प्रासंगिकता को भी हम उसी प्रसंग से जान सकेंगे ।  महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा – भगवान ! फाल्गुन की पूर्णिमा को गाँव-गाँव तथा शहर-शहर में उत्सव क्यों मनाया जाता है और गाँवों एवं नगरों में होली क्यों जलायी जाती है ? घर-घर जाकर बालक उस दिन अनाप-शनाप क्यों शोर मचाते हैं ? अडाडा (अरर की ध्वनि) किसे कहते हैं, उसे शीतोष्णा क्यों कहा जाता है तथा किस देवता का पूजन किया जाता है ? आप यह बताने की कृपा करें । भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा – पार्थ सतयुग में रघु नामके एक शूरवीर , प्रियवादी , सर्वगुणसम्पन्न और दानवीर राजा राज करते थे । वे सम्पूर्ण धरती को जीत कर सभी राजाओं को अपने अधीन करके पुत्र की भांति प्रजा का लालन-पालन किया करते थे । उनके राज्य में कभी भी दुर्भिक्ष...

वासंती (चैत्र) नवरात्र पर विशेष

वासन्ती नवरात्र पर विशेष प्रातःकाल की अरुणिमा बेला की शुरुआत में ही कोयल ने अपनी कूहुक से बंद पलकों को यह आहट दे दी, कि अब आलस का परित्याग करके अपनी दैनंदिनी को कुशलतापूर्वक करने का नूतन अवसर प्राप्त हुआ है । साथ ही आम के पल्लवप्रदेश में उपस्थित मंझरी की खुश्बु से पूरा वातावरण ही आनंदप्रद और सुकून होकर सदैव ही परिणाम से बेखौफ होकर अपने कर्तव्य की मस्ती में झूमते रहने का संदेश दे रहा है । भौरों ने भी अपनी खुशी को प्रदर्शित करते हुये रंग-बिरंगे खिल रहे फूलों पर गुञ्जन कर परागों का आस्वादन करना प्रारम्भ कर दिया है । जाड़े की विषमता से अलसाया मन अब उमंग, स्फूर्ति और उत्साह के साथ नये आयाम की ओर बढ़ने को गतिशील है । क्या अब भी नहीं समझे यह मौसम बसंत का है और महिना मधुमास है ?  जी हाँ । ऐसे ही सुन्दर आहटों के साथ प्रवेश होता है नये संवत्सर का । जब हर पुष्प मधु के निर्माण के लिये आवश्यक तत्व पराग के साथ प्रचुर मात्रा में उपस्थित रहते हैं तभी तो ऐसा दृश्य उपस्थित होता है । आइये इन नवीन पुष्पों के साथ ही हम अपने नये संवत्सर का स्वागत करें । इस संसार में ज्ञान दो प्रकार के हैं । इस पर ...