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भिक्षुकोपनिषद (Bhikshukopanishada)

भिक्षुकोपनिषद


भिक्षूनां पटलं यत्र विश्रान्तिमगमत्सदा ।
तत्त्रैपदं ब्रह्मतत्त्वं ब्रह्ममात्रं करोतु माम् ।।

जहाँ भिक्षुकों का समूह होता है, वहाँ सदैव ही विश्रान्ति पहुँच जाती है । वही त्रिपदा ब्रह्मतत्त्व मुझे ब्रह्म-प्राप्त (ब्रह्मज्ञान से युक्त) कर दे ।

Wherever there is a cluster of ascetics, spiritual peace reaches there itself. The Tripada Brahma (which has three bases) make me filled with the wisdom related to Brahma.

ॐ पूर्णमदः इति शान्तिः ।।
ॐ अथ भिक्षूणां मोक्षार्थिनां कुटीचकबहूदकहंसपरमहंसाश्चेति चत्वारः ।

ॐपूर्णमद इत्यादि शान्ति पाठ ।।
ॐ मोक्षार्थी भिक्षुक चार प्रकार के होते हैं- कुटीचक, बहूदक, हंस और परमहंस ।

Oum. The salvation seeker ascetics are of four types – Kutichaka, Bahoodaka, Hansa and Paramhansa.

कुटीचका नाम गौतम-भरद्वाज-याज्ञल्क्य-वसिष्ठ-प्रभृतयोऽष्टौ ग्रासांश्चरन्तो योगमार्गे मोक्षमेव प्रार्थयन्ते ।

कुटीचक नाम के भिक्षुक गौतम, भरद्वाज, याज्ञवल्क्य, भरद्वाज, वसिष्ठ के जैसे होते हैं जो आठ ग्रास भोजन करते हुये योगमार्ग में आरूढ़ होकर मोक्ष की ही कामना करते हैं ।

Kutichaka named ascetics are like that of Gautam, Bharadwaja, Yajnavalkya, Bharadwaja and Vashishttha who desire the salvation being continued on the path of yoga and take eight bits each day.

अथ बहूदका नाम त्रिदण्ड-कमण्डलु-शिखा-यज्ञोपवीत-काषाय-वस्त्रधारिणो ब्रह्मर्षिगृहे मधुमांसं वर्जयित्वाऽष्टौ ग्रासान्भैक्षाचरणं कृत्वा योगमार्गे मोक्षमेव प्रार्थयन्ते ।

बहूदका नाम के भिक्षुक त्रिदण्ड-कमण्डलु-शिखा-यज्ञोपवीत-काषाय वस्त्र धारण करने वाले और ब्रह्मर्षि कुल (अर्थात् ब्राह्ण वर्ण में) मधु-मांस (मदिरा-मांस) का त्याग करके आठ ग्रास का भक्षण करते हुये योगमार्ग में आरूढ़ होकर मोक्ष की ही कामना करते हैं ।

Bahoodaka named ascetics are those who are born in Brahmarshi family (Brahmin by birth), wear Tridanda (the holy stick of Ascetics) -Kamandalu (a pot for war taken by ascetics)-Yajnopaeeta (the sacred thread worn by the three Varnas which allows the chanting of Veda)-Saffron coloured clothes, avoid wine and meat, desire the salvation being continued on the path of yoga and take eight bits each day.

अथ हंसा नाम ग्राम एकरात्रं नगरे पञ्चरात्रं क्षेत्रे सप्तरात्रं तदुपरि न वसेयुः । गोमूत्रगोमयाहारिणो नित्यं चान्द्रायणपरायणा योगमार्गे मोक्षमार्गे मोक्षमेव प्रार्थयन्ते ।

हंस नाम के भिक्षुक गाँव में एकरात्र, नगर में पाँच रात्र, क्षेत्रे में सात रात्र से ज्यादा नहीं ठहरते । गोमूत्र औऱ गोबर (अर्थात पञ्चगव्य) का नित्य ही आहार करते हैं और चान्द्रायण व्रत करते हुये योगमार्ग में आरूढ़ होकर मोक्ष की ही कामना करते हैं ।

Hansa named ascetics are those who have maximum stay of single night in a village, five nights in a city and seven nights in a region. They take cow-dung and cow-urine (pancha-gavya, composition of five cowproducts i.e. milk, ghee, curd, cow-urine and cow-dung) and practices the Chandrayana-Vrata (It is a Tapa-practice in which the Sadhak eats the number of bites with respect to the stage of ascending and descending Moon in a month) and desire the salvation being continued on the path of yoga.

अथ परमहंसा नाम संवर्तकारिणि-श्वेतकेतु-जडभरत-दत्तात्रेय-शुक-वामदेव-हारीतक-प्रभृतयोऽष्टौ ग्रासांश्चरन्तो योगमार्गे मोक्षमेव प्रार्थयन्ते । वृक्षमूले शून्यगृहे श्मशानवासिनो वा साम्बरा वा दिगम्बरा वा । न तेषां धर्माधर्मौ लाभालाभौ शुद्धाशुद्धौ द्वैतवर्जिता समलोष्टाश्मकाञ्चनाः सर्ववर्णेषु भैक्षाचरणं कृत्वा सर्वत्रात्मैवेति पश्यन्ति । अथ जातरूपधरा निर्द्वन्द्वा निष्परिग्रहाः शुक्लध्यानपरायणा आत्मनिष्ठाः प्राणसंधारणार्थं यथोक्तकाले भैक्षमाचरन्तः शून्यागार-देवगृह-तृणकूट-वल्मीक-वृक्षमूल-कुलालशालाग्निहोत्रशाला-नदी-पुलिन-गिरिकन्दर-कुहरकोटर-निर्झर-स्थण्डिले तत्र ब्रह्ममार्गे सम्यक्संपन्नाः शुद्धमानसाः परमहंसाचरणेन संन्यासेन देहत्यागं कुर्वन्ति ते परमहंसा नामेत्युपनिषत् ।।1।।

परमहंस नाम के भिक्षुक संवर्त-कारिणि-श्वेतकेतु-जडभरत-दत्तात्रेय-शुक-वामदेव-हारीतक के समान आठ ग्रास का भक्षण करते हुये योगमार्ग पर आरूढ़ करते हुये मोक्ष की ही कामना करते हैं । वृक्षमूल में, शांत घर में, श्मशान में, वस्त्र के साथ या दिगम्बर किसी भी रूप में होते हैं । उनका न धर्म से सम्बन्ध है, न अधर्म से, न लाभ से, न हानी से, न शुद्ध से, न अशुद्ध से, सर्वथा द्वैत से परे, लोहा और स्वर्ण में समानता रखने वाले और वे सभी वर्णों के यहाँ भिक्षा लेकर सभी में आत्मवत् दृष्टि रखते हुये देखते हैं । जातरूप (सुन्दर, उपनिषदों में ब्रह्म को सौम्य अर्थात् सुन्दर कहा गया है, अर्थात् ब्रह्म) को धारण करने वाले, द्वन्द्व से परे, इकट्ठा करने की प्रवृत्ति से परे, शुक्ल (ज्ञान के प्रतीक शुक्ल होने के कारण कुछ साधक शिव को लेते हैं तो शुक्लाम्बर होने के कारण कुछ साधक विष्णु) का ध्यान करने वाले, आत्म-निष्ठ, प्राण की रक्षा के लिये समय समय पर भक्षण करते हुये एकान्त-गृह, देवालय, झोंपड़ी, दीमकों द्वारा बना मिट्टी का टिला, वृक्षमूल, कुम्हार के बर्तन बनाने के स्थान, अग्निहोत्र शाला, नदी, पुलिन (रेतीला नदी किनारा), पर्वत की घाटी, गुफा, वृक्ष की कोटर, झरना, यज्ञभूमि में रहता हूआ ब्रह्ममार्ग में अवस्थति होकर सम्यक रूप से संपन्न होकर, शुद्ध मन से युक्त, परमहंस के आचरण से युक्त संन्यास विधि से देहत्याग करनेवाले ही परमहंस नाम से जाने जाते हैं । इस प्रकार से उपनिषद है ।।1।।

Paramhansa named ascetics are similar to Samvarta-Karini-Shwetaketu-Jada Bharata-Dattatreya-Shuka-Vaamadeva-Hareetak etc who desire the salvation being continued on the path of yoga and take eight bits each day.  They can be found at the root of a tree, in a silent home, in the cremation point, dressed or totally undressed. They aren't bounded with righteousness or unrighteousness, neither with profit nor with loss, neither with purity nor with impurity, detached from duality, equal with iron and gold  and accept gift and donations from any Varna with a view of selfness everywhere. Those who are connected with Brahma everytime, freed from duality, freed from the habbit of collection, meditate the white (i.e. Shiva, being white as the colour of knowledge; whereas other take it Vishnu who wears white clothes), firm in Atma, eat to secure the Prana, stay in a silent place, temple, hut, ant-hill, root of a tree, place of a potter, place of Agnihotra (Daily Homa practitioner),river, riverside, valleys of mountains, caves, tree-cavity, fountains or place of Yajna and firm in the path to Brahma with all the knowledge, pure mind having the character of a Paramhansa leaves the body with Sanyasa, are known as Paramhansa. Thus, it is the Upanishad. ।।1।।

ॐपूर्णमद इति शान्तिः ।।
।।इति भिक्षुकोपनिषद।।

।। यही भिक्षुकोपनिषद है ।।

।।This is the Bhikshukopanishada।।

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