आरती श्रीगुरुशरण (श्रीगुरुचरण) की कीजै ।
भव तरणन की सिद्धि लीजै ।
जग में या सम ठौर नहीं, या से परे कुछ और नहीं ।
सबसे बढ़कर ज्ञान यहीं, सब इनको अपना बस लीजै ।। आरती
श्रीगुरु...
श्रीगुरु...
वेद शास्त्र के ज्ञान यहाँ पर, भक्ति वैराग उपदेश यहाँ पर ।
राम-कृष्ण की लीला यहाँ पर, नाम-लीला-रूप रसपान कीजै ।।
आरती श्रीगुरु..
आरती श्रीगुरु..
तुलसी-कबीर-गुरुनानक यहीं पर, शंकर-वल्लभ-रामानुज यहीं पर ।।
गौर-ज्ञानेश्वर-रामानंद यहीं पर, मेंही-तुकाराम-सूर यहीं पर
।। आरती श्रीगुरु...
।। आरती श्रीगुरु...
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