हम सभी को 27 अगस्त को आने वाले कुशोत्पाटिनी अमावस्या के संबंधित जानकारी को समझना चाहिए । कैसे मनाएं कुशोत्पाटिनी अमावस्या? इसको मनाने के क्या विशेष लाभ हैं? इसके क्या नियम हैं ? कुशा का हमारे जीवन में क्या महत्व है?
कुशा की हमारी सनातन धर्म में बहुत विशेष महत्ता बताई गई है । रोज के पूजन में कुशा का तो महत्व है ही, साथ ही साथ संपूर्ण जीवन में सोलह संस्कार उन सभी संस्कारों में भी कुशा का विशेष महत्व रहता है । इसलिए कुशा के बारे में जानना, उसकी प्राप्ति कैसे हो- इसके नियम को जानना बहुत आवश्यक है । वर्तमान समय में जब भी कभी हम पूजन-पाठ के लिए उपस्थित होते हैं, तो हम पंसारी की दुकान में जाते हैं और कुशा वहां से ले आते हैं । यह हमारे समय अभाव के कारण ही नहीं हो रहा, हमारी श्रद्धा के अभाव के कारण भी हो रहा है । कर्मकांड में, सनातन धर्म में और शास्त्रीय परम्परा में अश्रद्धा के कारण ऐसे दिन आ गए हैं, कि कुशा बाजार से लिए जाते हैं । यद्यपि नियम है कि एक दिन का उखाड़ा हुआ कुशा एक दिन ही पवित्र और उपयोगी माना जाता है । अमावस्या को उखाड़ा हुआ कुशा अगले अमावस्या तक पवित्र और उपयोगी माना जाता है । इसके साथ-साथ भादो की अमावस्या जिसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहते हैं, इस दिन उखाड़ी हुई जो कुशा है वह पूरे वर्ष पर्यन्त उपयोगी और पवित्र मानी जाती है। इसलिए कुशोत्पाटिनी अमावस्या का विशेष महत्व है । प्रमाण कहता है कि
*मासेन नभस्यामावस्या तस्यां दर्भोच्चयो मतः ।*
*आयातयामास्ते दर्भो विनियोज्या पुनः पुनः ।*
अर्थात् भादो या भाद्रपद मास की अमावस्या को उखाड़ा हुआ कुशा वर्ष पर्यंत बार बार उपयोग करने योग्य सिद्ध- पवित्र होता है ।
कुशा कैसे उखाड़ा जाए? सबसे पहले यह समझें कि कौन उखाड़ सकते हैं ? जिनके पिता नहीं है अर्थात शास्त्र के अनुसार जिनको श्राद्ध करने का अधिकार प्राप्त हो चुका है ऐसे लोग ही कुशा उखाड़ सकते हैं । वह भी कुशा उखाड़ते समय किसी भी अस्त्र-शस्त्र-औजार का प्रयोग नहीं किया जाए । कुशा को मुट्ठी से पकड़कर जड़ सहित ॐ हुं फट् बोलेंगे । ध्यान देंगे इस सरल मंत्र - ॐ फट् - इस मंत्र को कहते हुए ही कुशा को उखाड़ते हैं और जड़ में लगी हुई मिट्टी को जल से धोकर के घर मे, मंदिर में अपनी आवश्यकता के अनुसार कुशा को रख सकते हैं और उसका उपयोग हम करते रहते हैं ।
कुशा इतना महत्वपूर्ण हुआ या कुशा को इतना महत्त्व मिला कैसे? तो हम सबसे पहले कुशा की उत्पत्ति को समझते हैं । जब हिरण्याक्ष से युद्ध करते समय भगवान श्रीमन्नारायण वराह के रूप में जल से बाहर धरती को निकाल रहे होते हैं, उसी समय अपने शरीर में लगे हुए जल के बिंदुओं को गिराने के लिए, दूर करने के लिए अपने शरीर को वराह भगवान ने हिलाया है । जैसे शरीर को हिलाते हैं तो उनके जल के साथ-साथ उनका रोआं भी गिर पड़ता है । वहीं रोआं भविष्य में धरती पर पवित्र कुशा के रूप में उपस्थित हो जाता है । कुशा का महत्व इसलिए ही है कि भगवान श्रीमन्नारायण के शरीर का ही यह अंग है जो कुशा के रूप में उपस्थित है । इसीलिए सनातन धर्म के सभी संस्कार और सभी पूजन विधान में यह बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है । कुशा का जो शरीर है, यह भी जानने योग्य है । जड़ से लेकर फुनगी तक-ऊपर तक इसमें त्रिदेव का वास है ।
दर्भमूले स्थितो ब्रह्मा मध्ये देवो जनार्दनः ।
दर्भाग्रे शंकरं विद्यते त्रयो देवाः कुशे स्मृताः ।।
अर्थात जो दर्भ है, जो कुशा है -उसके जड़ में ब्रह्मा का वास, मध्य में भगवान विष्णु का वास और उसके अग्रभाग में-ऊपर के नोक पर जिसे फुनगी कहीं कहते हैं, कहीं नोक कहते हैं, उस भाग में रुद्र देवता है । इस प्रकार से त्रिदेव वहां उपस्थित हैं, विद्यमान हैं ।
कुशा का उपयोग एक बार ही नहीं किया जा सकता है । यह ध्यान देने योग्य बात है कि कुशा का उपयोग बारंबार धोकर किया जा सकता है । उसके लिए प्रमाण कहते हैं
विप्रा मंत्राः कुशा वह्निस्तुलसी च खगेश्वर ।
नैते निर्माल्यताम क्रियमाणाः पुनः पुनः ।।
ब्राह्मण, मंत्र, कुशा, अग्नि और तुलसी यह कभी भी पूजन के लिए बासी नहीं होते हैं । यह बारंबार धो धो करके इनका उपयोग किया जा सकता है । तो इस प्रकार से हमने समझा कि कुशा का उपयोग केवल एक बार ही नहीं किया जा सकता है । जैसे कि मान लिया कि एक वर्ष के लिए हमें कुशा चाहिए तब तो हमें 365 जड़ उखाड़ने होंगे, तो नहीं । हम आवश्यकता अनुसार उखाड़ के घर में रख लें और बारंबार उस कुशा के पवित्री को या जो कुछ भी उसके उपयोगी स्वरूप हैं, उसका बार-बार प्रयोग कर सकते हैं । यही नहीं ग्रहण के समय अपने भंडार आदि में भी कुशा रखने से ग्रहण के दोष से ये सभी भंडार आदि आवश्यक वस्तुएं बच जाती है । कुछ का बड़ा उपयोग है । कुशा ग्रहण के दुष्प्रभाव को भी दूर करने में सफल होता है । तो हम सभी ने इस प्रकार से समझा । जिन लोगों को कुशा उखाड़ने का अधिकार प्राप्त हो चुका है, वे कृपया 27 अगस्त को, शनिवार का दिन है, शनि अमावस्या भी है, इस दिन आप सभी अधिकार प्राप्त धार्मिक जनों से निवेदन है कि जरूर जाएं नदी किनारे कुशा को उखाड़ करके अपने घर के लिए, अपने भाई-बंधुओं के लिए, हमारे रिश्तेदारों के लिए और जो पास में मंदिर हैं, उन सबके लिए जरूर रखें । कम से कम एक मुट्ठी कुशा अपने पास के मंदिर में जरूर रखें कि गांव-मोहल्ले में किसी को भी कुशा की आवश्यकता हो, पूजन में या श्राद्ध में तो उसमें उसका उपयोग किया जा सके । इस प्रकार से कुशा-कुशोदक का बड़ा ही महत्व है । तो कुशोत्पाटिनी को हम सभी जरूर 27 अगस्त को करेंगे । मैं आशा करता हूं कि इस विषय में जानकारी आपको प्राप्त करके आप सनातन धर्म के इस कुशा के रहस्य को समझ चुके होंगे और कुशा के महत्व को समझकर अपने घर में कुशा आप जरूर रखेंगे ।
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