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कलिसंतरण उपनिषद - हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।

कलिसंतरणोपनिषत्
यद्दिव्यनाम स्मरतां संसारो गोष्पदायते ।
सा नव्यभक्तिर्भवति तद्रामपदमाश्रये ।।1।।
जिसके स्मरण से यह संसार गोपद के समान अवस्था को प्राप्त हो जाता है, वह ही नव्य (सदा नूतन रहने वाली) भक्ति है, जो भगवान श्रीराम के पद में आश्रय प्रदान करती है ।।1।।
The ever-young Bhakti (devotion) by the grace of which this world becomes like the hoof of a cow, provides refuge in the feet of Lord Shri Ram.
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
ॐ हम दोनों साथ में उनके (परमात्मा के) द्वारा रक्षित हों । दोनों साथ में ही आनंद की प्राप्ति (भोग) करें । दोनों साथ में ही अपने वीर्य (सामर्थ्य) का वर्धन करें । (शास्त्रों का) का अध्ययन करके तेजस्वी बनें । आपस में द्वेष का भाव न रखें ।
Oum. Let both of us be protected by Him together. Both of us attain the eternal bliss (ojectives) together. Both of us increase the spunk together. Both of us become enlightened after studying the different Shastras (the noble verses). Both of us shouldn’t envy among us.
हरिः ॐ ।। द्वापरान्ते नारदो ब्रह्माणं जगाम कथं भगवन् गां पर्यटन्कलि संतरेयमिति । स होवाच ब्रह्मा साधु पृष्टोऽस्मि सर्वश्रुतिरहस्यं गोप्यं तच्छृणु येन कलिसंसारं तरिष्यसि । भगवत आदिपुरुषस्य नारायणस्य नामोच्चारणमात्रेण निर्धूतकलिर्भवति । नारदः पुनः पप्रच्छ तन्नाम किमिति । स होवाच हिरण्यगर्भः । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।1।।
इति षोडशकं नाम्नां कलिकल्मषनाशनम् । नातः परतरोपायः सर्ववेदेषु दृश्यते ।।2।।
हरिः ॐ । (द्वापर जिसके अऩ्त में है, अर्थात्) कलियुग में देवर्षि नारद जी सभी जगह भ्रमण करते हुये ब्रह्मा जी के पास जाकर, पूछा कि किस प्रकार से कलियुग में जीव का तारण हो सकेगा । तब उन ब्रह्माजी ने कहा – मुझसे आपने बहुत ही अच्छा प्रश्न पूछा है । आप सारे वेदों के गुप्त सार को सुनें जिससे कि कलियुग में संसार से जीव तर जायेगा । भगवान आदिपुरुष नारायण के नाम उच्चारण मात्र से ही कलियुग के सारे दोष मिट जाते हैं । तब नारद जी ने दुबारा पूछा कि वह नाम क्या है ? तदनन्तर हिरण्यगर्भ ब्रह्माजी ने कहा –
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।1।।
इस प्रकार से यही सोलह अक्षर का नाम है, जो कलियुग के दोषों का नाश करने वाला है । इससे श्रेष्ठ कोई भी उपाय सभी वेदों में देखने को नहीं मिलता है ।।2।।
Hari Oum. In Kaliyuga, while wandering everywhere, Devarshi Naradji went beside Brahmaji and asked – How could a Jeeva be uplifted in the Kaliyuga? Then Brahmaji replied – You have asked a noble question.  You should listen the hidden essence of all Vedas by which the Jeeva can be uplifted in the Kaliyuga. The sins of Kaliyuga are erased at once after pronouncing the name of the Supreme Man Bhagawan Narayana. Then Naradaji asked Him again – What is that name? Then Brahmaji replied-
Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare. 1
Thus, this is the Sixteen alphabetical (Shodasha-akshari) Mantra, which can destroy the sins of Kaliyuga. There is no other better method obtained after searching all Vedas.2
इति षोडशकलावृत्तस्य जीवस्यावरणविनाशनम् । ततः प्रकाशते परं ब्रह्म मेघापाये रविरश्मीमण्डलीचेति । पुनर्नारदः पप्रच्छ भगवन्कोऽस्य विधिरिति । तं होवाच नास्य विधिरिति । सर्वदा शुचिरशुचिर्वा पठन्ब्राह्मणः सलोकतां समीपतां सरूपतां सायुज्यतामेति  । यदाऽस्य षोडशीकस्य सार्धत्रिकोटीर्जपति तदा ब्रह्महत्यां तरति । तरति वीरहत्याम् । स्वर्णस्तेयात्पूतो भवति । पितृदेवमनुष्याणामपकारात्पूतो भवति । सर्वधर्मपरित्यागपापात्सद्यः शुचितामाप्नुयात् । सद्यो मुच्यते सद्यो मुच्यते इत्युपनिषत् ।।3।। हरिः ॐ तत् सत् ।।
इस प्रकार से सोलह कलाओं से युक्त जीव के आवरण का विनाश हो जाता है ।  तब जीव को परम ब्रह्म उसी प्रकार से उद्भासित हो जाते हैं जैसे बादल के नष्ट हो जाने पर सूर्य के किरणों के मण्डली दृश्यमान हो जाते हैं । तब नारद जी ने पूछा कि – हे भगवन् ! इसकी विधि क्या है । तब ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा कि – इसका कोई विशेष नियम नहीं है । जीव सभी अवस्था में चाहे शुद्ध हों या अशुद्ध हों, इस षोडशाक्षरी मंत्र का जाप करता हुआ परम ब्रह्म के सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य और सायुज्य मोक्ष की प्राप्ति कर लेता हे । जब इस षोडशाक्षरी मंत्र का साढ़े तीन करोड़ जप हो जाता है, तब जीव के ब्रह्महत्या के दोष का नाश हो जाता है । वीर के हत्या के दोष का नाश हो जाता है । स्वर्ण के चोरी का पाप नाश हो जाता है । पितरों, देवताओं और मनुष्यों के प्रति किये गये अपकार का भी नाश होकर वह पवित्र हो जाता है । सभी धर्मों के परित्याग करके वह सभी पापों से मुक्त हो कर पवित्र हो जाता है । तत्क्षण ही मुक्त हो जाता है । तत्क्षण ही मुक्त हो जाता है । ऐसा ही विज्ञान है ।।3।।
Thus, the cover of Jeeva which is composed of sixteen entities gets destroyed. The Brahma then sparks in front of the Jeeva similar to the shinning beam of Sunrays after the disappearance of cloud. Then Naradaji asked – Oh Bhagawan! What is the method of this?  Then Brahmaji replied Naradaji – There is no such specific rule related to this. Either the Jeeva be pure or impure, with the recitation of this Mantra, it can attain Salokya (the eternal abode), Samipya (closeness), Saroopya (the shame shape of Him) and Sayujya (dissolved in Him). AS soon as the recitation of the Mantra reaches to the number of 35 million, the sins of Brahmahatya (death of Brahmin) gets demolished. Sin from the murder of a warrior also gets destroyed. The sin from the theft of gold is also destroyed. The sin aroused from the misbehavior with the Pitar (the dead ancestors and others), demigods and human also gets destroyed. He gets purified from all of the sins after getting detached from all the ritualistic (religious) activities. The Jeeva attains salvation at the moment. This is Wisdom (Upanishads).
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
ॐ हम दोनों साथ में उनके (परमात्मा के) द्वारा रक्षित हों । दोनों साथ में ही आनंद की प्राप्ति (भोग) करें । दोनों साथ में ही अपने वीर्य (सामर्थ्य) का वर्धन करें । (शास्त्रों का) का अध्ययन करके तेजस्वी बनें । आपस में द्वेष का भाव न रखें ।
Oum. Let both of us be protected by Him together. Both of us attain the eternal bliss (objectives) together. Both of us increase the spunk together. Both of us become enlightened after studying the different Shastras (the noble verses). Both of us shouldn’t envy us.
।। इति श्रीकलिसंतरणोपनिषत्समाप्ताः ।।
।।इस प्रकार से कलिसंतरणोपनिषद समाप्त होता है ।।

.Thus the Kali-Santarnopanishada ends.
अपने विचार से हमें जरूर लाभान्वित करेंगे जिससे कि दास भविष्य में भी अन्य विषयों पर अपने लेख लिखकर जनसामान्य की सेवा कर सके ।
स्वामी श्रीवेंकटेशाचार्यजी, 
श्रीचरण आश्रम, वृंदावन 


+918958449929, +918579051030

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टिप्पणियाँ

  1. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
    हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।

    जवाब देंहटाएं
  2. Second line is spoken first, and first line is spoken afterwards.
    Does it make any difference?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. There is no difference....among Ram Krishna and Hari ....ISKON ..monk chants first hare Krishna

      हटाएं
    2. पहले कृष्णा और बाद में राम कह कर मंत्र japne का एक कारण यह है कि बीज़ मन्त्रों को हर अवस्था और स्थान में japna निषेध है. इसलिए क्रम उल्ट देने से बीज़ मंत्र वाला दोष नहीं रहता और लाभ में कोई कमी नहीं होती

      हटाएं
    3. महाशय आपने बोला की बीज मंत्र को हर अवस्था में नहीं जपा जाता निषेध होता है , पर ब्रम्हा जी तो खुद ही बोल रहे है को इसमें कोई नियम नहीं है।

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