वैकुण्ठ से प्रभावी और आनन्दप्रद है प्रभु का व्रज धाम
ऐश्वर्यपूर्ण व्रज में निवास करनेवाले श्रीभगवान के अवतार के जगह होने से ब्रज ऐश्वर्य से पूर्ण है, यह तो एक साधारण सी बात है । विशेष रहस्य यह है कि अवतारों में और विशेषकर कृष्णावतार में ही श्रीभगवान के दया, क्षमा, सौशील्य, वात्सल्य और भी बहुत सारे भाव और गुण प्रकट होते हैं । परमपद में इन गुणों को प्रकाश पाने का अवसर नहीं मिलता है । भक्तों का दुख देखकर श्रीभगवान का स्वयं दुखी होना या उस दुख को दूर करने की चेष्टा करना इत्यादि दया कहलाता है । ब्रज में तो श्रीभगवान आपकी पीड़ा को नित्य ही समझते हैं । आपके के भक्ति को जानते हैं । आपके भजन को सुनकर आनन्दित होते हैं । प्रसन्न होते हैं । आप सच्चे मन से उनकी भक्ति करते हैं तो आपके दुखों को दूर करते हैं और आप सुख की कामना को प्राप्त करते हैं । इसीलिए हम भक्तों से यही कहना चाहते हैं, भगवत्प्रेमियों से यही कहना चाहते हैं कि हमें क्या पता कि हमने कितने जीव-जन्तुओं को ठेस पहुँचाया है ? किन्तु आप सज्जन तो यही सोंचेंगे कि हमने तो कभी जीव-जन्तुओं को कष्ट नहीं पहुँचाया है परन्तु नहीं । आप को आभास नहीं होता कि आपके चलते समय कितने कीड़े-मकोड़े आप पाँव से दबकर मर जाते हैं । क्या यह पाप के समान नहीं हुआ ? इसीलिये हम भगवत् - भजन करके ऐसे पापों से मुक्त हो सकते हैं । भगवान के प्रेम के रस में डूब कर मुक्त हो सकते हैं । प्रायः हमें देखने-सुनने को मिलता है कि कुछ मनुष्य भगवान का भजन इसीलिये करते हैं कि उनकी मनोकामना की पूर्ति हो जाए । हमें नौकरी मिल जाएगी तो हम अमुक वस्तु चढ़ाएंगे । हमें नया घर हो जाएगा तो यह अमुक पूजन करावेंगे । हम गाड़ी खरीद लेंगे तो अमुक स्थान दर्शन करने जाएंगे । हमें संतान प्राप्ति हो जाएगी तब हम अमुक धाम दर्शन करने जायेंगे । आदि-आदि । हमें यह भी सुनने को मिलता है कि यदि कोई सम्बन्धी हमारे घर शादी आदि उत्सवों में न जाये तो हम भी उनके किसी उत्सव आदि में नहीं जाते हैं । भगवान तो इन सांसारिक बन्धनों से परे हैं । इसीलिये हमें भगवान के प्रति ऐसी ही सोंच नहीं रखनी चाहिये । पहले आप ऐसा करके तो देखिये । भगवान के प्रति प्रेम का प्रयास करें । आप भोजन बनाते हैं तो पहले भगवान को भोग लगाएं । पहले भगवान को ही फल-वस्त्र-आभूषण आदि को समर्पित करके स्वयं ग्रहण करें । इसमें कोई कष्ट तो नहीं है । आप कभी घूमने के लिये किसी मंदिर जाएं, या वृन्दावन या हरिद्वार या श्रीरामजन्मभूमि अयोध्या जाएं, वहाँ जाकर आप भगवान को प्रणाम करें और उनसे अपने अपराधों के लिये क्षमा माँगे । उनसे श्रद्धा भाव से जो कुछ भी मांगेंगे तो श्रीभगवान आपकी प्रार्थना जरूर सुनेंगे । आप यह चिन्तन करते रहते हैं कि हमें उस परमपद वैकुण्ठ की प्राप्ति होगी या नहीं । इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं है । आनन्द की बात तो यह है कि जब श्रीभगवान ने हमें मनुष्य का रूप में जन्म दिया है तो यह भी बड़ी सौभाग्य की बात है । अब हम श्रीभगवान की भक्ति करें । यदि कोई कभी यहाँ पाप करता है तो श्रीभगवान हमें यहीं इसी ब्रज धाम में क्षमा करते हैं । यदि कोई पुण्य करता है तो श्रीभगवान हमें यहीँ पर सुखद अनुभूति कराते हैं । परमपद में तो सब एक समान ही होते हैं । किसी को कोई पीड़ा नहीं होती तो भगवान दया कैसे दिखाएंगे ? क्षमा तो अपराधियों को किया जाता है । श्रीभगवान के परमपद में अपराध तो है हि नहीं तो फिर अपराधी की क्या चर्चा? समस्त दोषों से दूर परमपद में अपराधी कौन कौन होगा । ऐसी स्थिति में श्रीभगवान किसे क्षमा करेंगे । इसीलिये परमपद से ज्यादा आनन्दप्रद स्थान ब्रज है । यहाँ हमें श्रीभगवान की क्षमा, दया, सौशील्यता, वात्सल्यता आदि गुणों को देखने का सुनने का अवसर प्राप्त होता है । इसीलिए हम उस परमपद की चिन्ता न करके क्यों न ब्रज में ही श्रीभगवान की सेवा-पूजा करें । भजन करें । जो कोई पाप हमने किए हों तो श्रीभगवान हमारे सभी पापों का नाश करेंगे, सारे दुखों को दूर करेंगे । पता नहीं, हमें परमपद प्राप्त हो न हो । तो आइए ब्रज धाम और उसमें रहनेवाले समस्त वासियों की दर्शन-सेवा करके जीवन धन्य करें ।
जयश्रीमन्नारायण,
मैथिली जी,
वृन्दावन
8958449929
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