श्रीरामचरितमानस के सिद्ध
दोहा-चौपाई
(1)
जल वर्षा –
सोइ जल अनल अनिल संघाता । होई जलद जग जीवन दाता ।।
(2)
विघ्न नाश –
सकल विघ्न व्यापहि नहिं तेही । राम सुकृपा बिलोकहिं जेही ।।
(3)
विपत्ति के नाश –
राजीव नयन धरें धनु सायक । भगत बिपति भंजन सुखदायक ।।
(4)
विषनाश –
नाम प्रभाउ जान सिव नीको । कालकूट फलु दीन्ह अमीको ।।
(5)
विषयवृत्तिभंग –
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहि सर परई ।।
(6)
करतब नाश –
मायापति सेवक सन माया । करइ तो उलटि परइ सुरराया ।।
(7)
सुख-सम्पत्ति –
जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं । सुख संपति नाना बिधि पावहिं
।।
(8)
दुष्ट दलन –
जो अपराधु भगत कर करई । राम रोष पावक सो जरई ।।
(9)
दुष्ट से मिलाप –
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई । गोपद सिंधु अनल सितलाई ।।
(10)
रक्षा –
मामभिरक्षय रघुकुलनायक । धृत बर चाप रुचिर कर सायक ।।
अथवा
मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ । एहि अवसर सहाय सोइ होऊ ।।
(11)
मुकदमा अथवा रण
जीतना -
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत । सीता सहित अनुज प्रभु आवत ।।
(12)
दरपेशी के वक्त
पढ़ना –
सखा धर्ममय अस रथ जाकें । जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें ।।
(13)
मोहन –
करतल बान धनुष अति सोहा । देखत रूप चराचर मोहा ।।
(14)
वशीकरण –
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी । किएँ तिलक गुन गन बस करनी ।।
(भूमि मे हाथ रगड़कर तिलक लगाके किसी विरोधी पुरुष के पास
चला जाये । वह विरोधी पुरुष साधक के अनुकूल रहेगा और करेगा ।)
(15)
शत्रु विदारण –
हनूमान अङ्गद रन गाजे । हाँक सुनत रजनीचर भाजे ।।
(16)
शत्रु के सम्मुख न
आने का –
कर सारंग साजि कटि भाथा । अरि दल दलन चले रघुनाथा ।।
(17)
अल्पमृत्यु निवारण –
पाहि पाहि रघुबीर गोसाईं । यह खल खाई काल की नाई ।।
अथवा
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा । सब सुन्दर सब बिरुज सरीरा ।।
अथवा
दोहा – नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित, जाहिं प्राण केहिं बाट ।।
(18)
मुखस्तम्भन –
गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी । प्रगट न लाज निसा अवलोकी ।।
(19)
कार्य सिद्धि के
लिये –
सोरठा – स्वयंसिद्ध सब काज नाथ मोहि आदर दियउ ।
अस विचारि जुबराज, तन पुलकित हरषित हियउ ।।
अथवा
दोहा – वह सोभा समाज सुख कहत न बनइ खगेस ।
बरनहिं सारद सेष श्रुति सो रस जान महेस ।।
अथवा
सुनहु देव सचराचर स्वामी । प्रनतपाल उर अंतरजामी ।।
मोर मनोरथु जानहु नीकें । बसहु सदा उर पुर सबही कें ।।
(20)
सुन्दर आभूषण पाने
के लिये –
रामचरित चिंतामनि चारू । संत सुमति तिय सुभग सिंगारू ।।
(21)
ज्वरादि नाश –
त्रिविध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(22)
तिजरा बुखार के नाश –
सुनु खगपति यह कथा पावनी । त्रिविध ताप भव भय दावनी ।।
(23)
पुत्र प्राप्ति –
एक बार भूपति मन माहीं । भै गलानि मोरे सुत नाहीं ।।
(यहाँ से प्रारम्भ करें औऱ उत्तरकाण्ड तक पढ़के बालकाण्ड से
शुरू करके नीचे के दोहा तक समाप्त करें ।)
दोहा – कौसल्यादि नारि प्रिय, सब आचरन पुनीत ।
पति अनुकूल प्रेम दृढ़, हरि पद कमल बिनीत ।।
अथवा निम्नांकित व्यतिक्रम पाठ अर्थात उल्टा क्रम से पाठ
करें –
कबहुँ उछंग कबहुँ बर पलना । मातु दुलारइ कहि प्रिय ललना ।
(यहाँ से प्रारम्भ करें और उल्टा पाठ करते इस नीचे लिखे
दोहा तक समाप्त करें ।)
दोहा - दानि सिरोमनि कृपानिधि, नाथ कहउँ सतिभाउ ।
चाहउँ तुम्हहि समान सुत प्रभु सन कवन दुराउ ।।
(24)
महामारी निवारण हेतु
–
दोहा - जयति राम जय लछिमन जय कपीस सुग्रीव ।
गर्जहिं सिंहनाद कपि भालु महा बल सींव ।।
श्रवण सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।
त्राहि त्राहि आरति हरन
सरन सुखद रघुबीर ।।
कृपा बारिधर राम खरारी । पाहि पाहि प्रनतारति हारी ।।
(इन सभी चौपाई-दोहा का संयुक्त रूप से हमेशा गायन करते हुए
अपने कार्यों को करे या किसी एक से सम्पुटित नवाह्न पारायण करें ।)
एक प्रयोग-
पाहि पाहि रघुबीर गोसाईं । यह खल खाइ काल की नाईं ।।
(एक हाथ से खींचा हुआ जल मंगाकर 21 बार अथवा 7 बार पढ़कर
थोड़ा सा पानी सब मकान में छींटे, बिमार को उसी में से पानी पिलावे, पानी ढ़का रहे
। बिमार व्यक्ति भी इसी मंत्र का जाप करता रहे तो और भी अच्छा है और जिस मकान में
बिमारी हो, उस पर लिख कर दरवाजे पर चिपका दें ।)
(25)
खेद निवारक-
जबसे राम ब्याहु घर आए । नित नव मंगल मोद बधाए ।।
अथवा
आए ब्याहि रामु गर जब तें । बसइ अनंद अवध सब तब तें ।।
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