संत मिलन को जाइए ... इधर कुछ दिनों के लिये मैं वृन्दावन से निकलकर कुछ दिनों बिना किसी विशेष आयोजन के कुछ भक्तों के घर पर प्रवास करता हुआ घूम रहा था । मुझे भक्तों के बीच रहकर कई सारी बातों को देखने का अवसर प्राप्त हुआ । मुझसे जो उनकी अपेक्षायें थी, शायद वो मेरे लिये उतनी महत्व नहीं रख रही थी । मेरे कर्तव्य और उनकी मुझसे की जा रही अपेक्षाओं में समानता नहीं थी । फिर मैंने थोड़ा और आत्म-मंथन किया कि प्रायः जो वेषधारी समाज में घूम रहे हैं, उनके द्वारा ही ऐसा भ्रम फैलाया हुआ है । मैं इस विषय पर मौन होकर खण्डवा, पुणे, मुम्बई, बड़ोदरा आदि कई जगहों पर होता हुआ, कई भक्तों से मिलता हुआ श्रीवृन्दावन को लौट आया । मन में बहुत सारे प्रश्न और शंका उत्पन्न हो चुके थे । मुझे लगा कि इस विषय पर मुझे कुछ लिखना चाहिये कि आखिर समाज में वेषधारियों की आवश्यकता क्या है ? उनकी उपयोगिता को समझने की आवश्यकता बहुत हो चुकी है । एक ऐसा प्रयास कि साधु-संत-आचार्य-गुरु के कर्तव्य और समाज में भक्तों की उनसे अपेक्षाओं में सामंजस्य की प्राप्ति को खोज हो । मैं इस तथ्य से तनिक भी अनभिज्ञ नहीं कि, कई वेषधारी संतों को...