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दान और योग्य पात्र

#दान #योग्यता एक बार पूरा लेख पढ़ें और कमेंट करें  एक बार रात्रि के नौ बजे किसी काम से वृन्दावन में परिक्रमा मार्ग पर किसी आगन्तुक श्रद्धालु की प्रतिक्षा कर रहा था । ठण्ड बहुत जोर की थी । लगभग 5-6 डिग्री । कुछ लोग अलाव लगा कर अग्नि का सेवन कर रहे थे । मुझे भी इसका लाभ ले लेना चाहिये । ऐसा विचार करके, उस ओर बढ़ चला । जलती अग्नि ठण्डक को दूर कर रही थी । उन्हीं मनानुभावों में से किसी ने हमसे एक प्रश्न पूछ लिया कि दान किसे करें ?  मैंने उसकी ओर बड़े ही ध्यान से देखा और उसकी कलियुगी जिज्ञासा का रहस्य समझ कर उससे यथोचित उत्तर भी दे दिया । लेकिन यह प्रश्न मेरे मन में बारंबार उठता ही रहा । वास्तविक में यह प्रश्न समसामयिक है और विचारणीय है । यद्यपि दान के ऊपर श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने स्वयं अपने श्रीमुख से स्पष्ट व्याख्या प्रदान किया है किन्तु सामान्य जनमानस गीता जी के उन रहस्यों को समझ नहीं पा रहा है । समझे भी कैसे, अपनी पेट की आग को मिटाने के चक्कर में उपदेशों को तोड़-मरोड़कर पेश करने की परम्परा चल पड़ रही है । शास्त्रीय प्रमाणों से दूर भागता धर्माचार्य स्वयं तो व्यग्र और अस्थिर ...
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कुशोत्पाटिनी अमावस्या, 2022

हम सभी को 27 अगस्त को आने वाले कुशोत्पाटिनी अमावस्या के संबंधित जानकारी को समझना चाहिए । कैसे मनाएं कुशोत्पाटिनी अमावस्या? इसको मनाने के क्या विशेष लाभ हैं? इसके क्या नियम हैं ? कुशा का हमारे जीवन में क्या महत्व है?   कुशा की हमारी सनातन धर्म में बहुत विशेष महत्ता बताई गई है । रोज के पूजन में कुशा का तो महत्व है ही, साथ ही साथ संपूर्ण जीवन में सोलह संस्कार उन सभी संस्कारों में भी कुशा का विशेष महत्व रहता है । इसलिए कुशा के बारे में जानना, उसकी प्राप्ति कैसे हो- इसके नियम को जानना बहुत आवश्यक है । वर्तमान समय में जब भी कभी हम पूजन-पाठ के लिए उपस्थित होते हैं, तो हम पंसारी की दुकान में जाते हैं और कुशा वहां से ले आते हैं । यह हमारे समय अभाव के कारण ही नहीं हो रहा, हमारी श्रद्धा के अभाव के कारण भी हो रहा है । कर्मकांड में, सनातन धर्म में और शास्त्रीय परम्परा में अश्रद्धा के कारण ऐसे दिन आ गए हैं, कि कुशा बाजार से लिए जाते हैं । यद्यपि नियम है कि एक दिन का उखाड़ा हुआ कुशा एक दिन ही पवित्र और उपयोगी माना जाता है । अमावस्या को उखाड़ा हुआ कुशा अगले अमावस्या तक पवित्र और उपयोगी माना ज...

वैकुण्ठ से प्रभावी और आनन्दप्रद है प्रभु का ब्रज धाम

वैकुण्ठ से प्रभावी और आनन्दप्रद है प्रभु का व्रज धाम ऐश्वर्यपूर्ण व्रज में निवास करनेवाले श्रीभगवान के अवतार के जगह होने से ब्रज ऐश्वर्य से पूर्ण है, यह तो एक साधारण सी बात है । विशेष रहस्य यह है कि अवतारों में और विशेषकर कृष्णावतार में ही श्रीभगवान के दया, क्षमा, सौशील्य, वात्सल्य और भी बहुत सारे भाव और गुण प्रकट होते हैं । परमपद में इन गुणों को प्रकाश पाने का अवसर नहीं मिलता है । भक्तों का दुख देखकर श्रीभगवान का स्वयं दुखी होना या उस दुख को दूर करने की चेष्टा करना इत्यादि दया कहलाता है । ब्रज में तो श्रीभगवान आपकी पीड़ा को नित्य ही समझते हैं । आपके के भक्ति को जानते हैं । आपके भजन को सुनकर आनन्दित होते हैं । प्रसन्न होते हैं । आप सच्चे मन से उनकी भक्ति करते हैं तो आपके दुखों को दूर करते हैं और आप सुख की कामना को प्राप्त करते हैं । इसीलिए हम भक्तों से यही कहना चाहते हैं, भगवत्प्रेमियों से यही कहना चाहते हैं कि हमें क्या पता कि हमने कितने जीव-जन्तुओं को ठेस पहुँचाया है ? किन्तु आप सज्जन तो यही      सोंचेंगे कि हमने तो कभी जीव-जन्तुओं को कष्ट नहीं पहुँचाया है परन्तु नहीं ।...

जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट् - अन्वय और व्याख्या । श्रीमद्भागवत मंगलाचरण ।

  जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट् तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ते यत्सूरयः । तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि ।। (1/1/1) श्रीमद्भागवत महापुराण का मंगलाचरण का प्रथम श्लोक अद्भुत रहस्यों से युक्त है । आइए इस पर विचार करें - य ब्रह्म - वह जो ब्रह्म है, जन्माद्यस्य यतः - जिससे इस जगत की सृष्टि, स्थिति और प्रलय होते हैं, और जो इतरतः - अन्य स्थान (नित्य विभूति वैकुण्ठ) से, अन्वयात् – पीछे से (गुप्त रूप से या परोक्ष रूप से अन्तर्यामी भाव से), अर्थेषु – सासांरिक वस्तुओं में (उस परम अर्थ के लिए उपस्थित वस्तु को अर्थ कहते हैं), अभिज्ञः – जानने वाला है (साक्षी जीवात्मा के रूप में उपस्थित या परम कर्ता है), च – और, स्वराट् - परम स्वतंत्र है, इ – अचरज की बात यह है कि, तेन – उसके द्वारा, हृदा – संकल्प से ही, आदिकवये – आदिकवि ब्रह्माजी के लिए वेदज्ञान दिया गया है, यत्सूरयः –जिसके विषय में (उस परम ज्ञान या भगवद्लीला के बारे में) बड़े-बड़े विद्वान भी, मुह्यन्ति – मोहित हो जाते हैं । यथा –जैसे, त...

राधा अष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं

गणेश चतुर्थी : गणेश जन्म-विवाह की कथा और उनके पूजन की महिमा ।

  गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् । उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम् ।। गणेशजन्म की कथा एक समय की बात है कि, पार्वती जी जया, विजया आदि अपनी सखियों के साथ कैलाश मैं बैठकर आपस में कुछ चर्चा कर रहीं थीं । उसी समय यह चर्चा चल पड़ी कि यद्यपि नंदी, भृङ्गी आदि गण हमारे ही गण हैं किन्तु वे पूर्णतः शिव की आज्ञा के अधीन हैं । स्वतन्त्र रूप से हमारा कोई गण नहीं है । अतः हे शिवा आपको अपने लिए स्वतंत्र रूप से एक गण की रचना करनी चाहिए । यह चर्चा यहीं समाप्त हो गई । कुछ दिनों बाद एक बार पार्वती जी स्नान कर रहीं थीं तब उन्होंने द्वार पर नन्दी को बिठा रखा था । तभी शिव उन्हें डांटकर भीतर प्रवेश कर गए थे । स्नानक्रीड़ा में संलग्न पार्वती लज्जित हो गईं और तुरन्त उठ गयीं । तब उनके मन में सखियों के द्वारा कही हुई विचार तार्किक जान पड़ी । कुछ ही समय बाद एक बार स्नान करते समय भगवती पार्वती इस विचार को चरितार्थ करने को उद्यत हुईं । उनके मन में यह विचार आने लगा कि मेरा भी कोई अपना सेवक होना चाहिए, जो श्रेष्ठ हो तथा मेरी आज्ञा के बिना रेखामात्र भी इधर से उधर वि...

रोहिणी नक्षत्रोत्सव, कृष्ण जन्मोत्सव की शुभकानाएं