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भगवान की कथा करते समय क्या संभालकर रखना आवश्यक है ?

जे गावहिं यह चरित सँभारे । तेइ येहि ताल चतुर रखवारे ।। संप्रति श्रीभगवान के यशोगान करने की नित्य ही आधुनिकता से ओत-प्रोत ऩई-नई विधियों के माध्यम से श्रीभगवान के यशगाथा गाने की परिपाटी सी चल पड़ी है । ऐसे में हमारी नई पीढ़ी के प्रेमीगण कभी कभी भ्रमित से हो पड़ते हैं कि श्रीभगवान के यशोगान की सही विधि क्या हो  ?   हमें किन बातों पर किसि भी परिस्थिति में विशेष ध्यान रखनी चाहिये  ?  बाबा तुलसी ने इन्हीं प्रश्नों के प्रति इशारा करते हुये कहा है कि श्रीभगवान के यशोगान की रखवारी वही कर सकता है जो इस चरित्र का गान संभल कर करे । विधियाँ कई हो सकती हैं – हरि अनंत हरि कथा अनंता ।  कहहीं सुनहिं  बहुबिधि  सब संता ।।  (श्रीरामचरितमानस/बा/140) किंतु रहस्य की बात यह है कि, बाबा तुलसी ने अनेकानेक विधियों को स्वीकार किया है किन्तु उन सभी विधियों में संभलकर ही श्रीभगवान के यशोगान को करने का विचार रखा है । हमारी नई पीढ़ी के कथा प्रसंग करनेवालों को यह विचार करने की आवश्यकता है कि आधुनिकता के इस दौर में जहाँ नित्य ही नई-नई संसाधनों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है,...

शुभाशुभ कर्म की चिंता

शुभाशुभ कर्म की चिंता इस दौरान मुझे गौर, रौतहट, नेपाल में कुछ दिन प्रवास करने का अवसर प्राप्त हुआ ।   वहाँ हमारे सम्बन्धि और क्षेत्र के सुप्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक डॉ हरिश्चन्द्र झा जी से मेरी मुलाकात हुई ।   अपने व्यस्त कार्यक्रम होने पर भी उन्होंने मेरे साथ कुछ पल बिताया । बहुत ही विनम्रता और स्पष्टता के साथ उनका एक प्रश्न मेरे सामने आया कि – क्या शुभ कर्म का परिणाम शुभ ही होता है ? चुकि कई बार समाज में ऐसे लोग भी देखने को मिलते हैं, जो जीवन पर्यन्त अन्य लोगों के प्रति सहृदय रहते हुए सदैव ही शुभ कर्मों से ही जुड़े रहते हैं । फिर भी उन्हें बहुत कष्ट उठाना पड़ता है । ऐसा क्यों ? क्या इससे हतोत्साहित होकर युवाओं को शुभ कर्मों के आचरण से हमें दूर हो जाना चाहिये ? यह प्रश्न दिखने में बहुत सरल किन्तु समझने में बहुत ही सारगर्भित और गम्भीर है । भगवान श्रीकृष्ण से अर्जुन ने कर्म के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा है - ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन । तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव ।। (श्रीमद्भगवद्गीता – 3/1) यहाँ आशय यह है कि अर्जुन ने पूछा है कि - हे जन...