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दान और योग्य पात्र

#दान #योग्यता एक बार पूरा लेख पढ़ें और कमेंट करें  एक बार रात्रि के नौ बजे किसी काम से वृन्दावन में परिक्रमा मार्ग पर किसी आगन्तुक श्रद्धालु की प्रतिक्षा कर रहा था । ठण्ड बहुत जोर की थी । लगभग 5-6 डिग्री । कुछ लोग अलाव लगा कर अग्नि का सेवन कर रहे थे । मुझे भी इसका लाभ ले लेना चाहिये । ऐसा विचार करके, उस ओर बढ़ चला । जलती अग्नि ठण्डक को दूर कर रही थी । उन्हीं मनानुभावों में से किसी ने हमसे एक प्रश्न पूछ लिया कि दान किसे करें ?  मैंने उसकी ओर बड़े ही ध्यान से देखा और उसकी कलियुगी जिज्ञासा का रहस्य समझ कर उससे यथोचित उत्तर भी दे दिया । लेकिन यह प्रश्न मेरे मन में बारंबार उठता ही रहा । वास्तविक में यह प्रश्न समसामयिक है और विचारणीय है । यद्यपि दान के ऊपर श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने स्वयं अपने श्रीमुख से स्पष्ट व्याख्या प्रदान किया है किन्तु सामान्य जनमानस गीता जी के उन रहस्यों को समझ नहीं पा रहा है । समझे भी कैसे, अपनी पेट की आग को मिटाने के चक्कर में उपदेशों को तोड़-मरोड़कर पेश करने की परम्परा चल पड़ रही है । शास्त्रीय प्रमाणों से दूर भागता धर्माचार्य स्वयं तो व्यग्र और अस्थिर ...