गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् । उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम् ।। गणेशजन्म की कथा एक समय की बात है कि, पार्वती जी जया, विजया आदि अपनी सखियों के साथ कैलाश मैं बैठकर आपस में कुछ चर्चा कर रहीं थीं । उसी समय यह चर्चा चल पड़ी कि यद्यपि नंदी, भृङ्गी आदि गण हमारे ही गण हैं किन्तु वे पूर्णतः शिव की आज्ञा के अधीन हैं । स्वतन्त्र रूप से हमारा कोई गण नहीं है । अतः हे शिवा आपको अपने लिए स्वतंत्र रूप से एक गण की रचना करनी चाहिए । यह चर्चा यहीं समाप्त हो गई । कुछ दिनों बाद एक बार पार्वती जी स्नान कर रहीं थीं तब उन्होंने द्वार पर नन्दी को बिठा रखा था । तभी शिव उन्हें डांटकर भीतर प्रवेश कर गए थे । स्नानक्रीड़ा में संलग्न पार्वती लज्जित हो गईं और तुरन्त उठ गयीं । तब उनके मन में सखियों के द्वारा कही हुई विचार तार्किक जान पड़ी । कुछ ही समय बाद एक बार स्नान करते समय भगवती पार्वती इस विचार को चरितार्थ करने को उद्यत हुईं । उनके मन में यह विचार आने लगा कि मेरा भी कोई अपना सेवक होना चाहिए, जो श्रेष्ठ हो तथा मेरी आज्ञा के बिना रेखामात्र भी इधर से उधर वि...